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Monday, June 14, 2021

भारत कि बैंकिंग व्यवस्था

भारत कि बैंकिंग व्यवस्था

 

बैंकों का राष्ट्रीयकरण

मुख्य लेख : भारत में बैंकों का राष्ट्रीयकरण

भारतीय रिजर्व बैंक का राष्ट्रीयकरण स्वतन्त्रता के उपरान्त सन् 1949 में किया गया। इसके कुछ वर्षों के उपरान्त सन् 1955 ई. में इंम्पीरियल बैंक ऑफ इण्डिया का भी राष्ट्रीयकरण किया गया और उसका नाम बदल करके भारतीय स्टेट बैंक रखा गया। आगे चलकर सन् 1959 ई. में भारतीय स्टेट बैंक अधिनियम बनाकर आठ क्षेत्रीय बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया। वर्तमान में ये आठों बैंक भारतीय स्टेट बैंक समूह के बैंक कहे जाते हैं। इन आठों बैंकों के नाम - स्टेट बैंक ऑफ हैदराबाद, स्टेट बैंक ऑफ बीकानेर एण्ड जयपुर, स्टेट बैंक ऑफ इन्दौर, स्टेट बैंक ऑफ मैसूर, स्टेट बैंक ऑफ ट्रावणकोर इत्यादि हैं। देशभर में इनकी लगभग 15,000 शाखायें हैं।

देश के प्रमुख चौदह बैंकों का राष्ट्रीयकरण 19 जुलाई सन् 1969 ई. को किया गया। ये सभी वाणिज्यिक बैंक थे। इसी तरह 15 अप्रैल सन 1980 को निजी क्षेत्र के छ: और बैंक राष्ट्रीयकृत किये गये। इन सभी बीस बैंकों की शाखायें देशभर में फैली हैं। वर्तमान में कुल १९ राष्ट्रीयकृत बैंक हैं।

निजी व सहकारी क्षेत्र के बैंक

भारतीय रिजर्व बैंक ने जनवरी, सन् 1993 ई. में तेरह नये घरेलू बैंकों को बैंकिंग गतिविधियां शुरू करने की अनुमति दी। इनमें प्रमुख हैं यू.टी.आई., इण्डस इण्डिया, आई.सी.आई.सी.आई., ग्लोबल ट्रस्ट, एचडीएफसी तथा आई.डी.बी.आई.। देश में लगभग पाँच सौ सहकारी क्षेत्र के बैंक भी बैंकिंग गतिविधियों में संलगहैं। देशी बैंकों के साथ अमेरिकी, यूरोपीय तथा एशियायी देशों की बैंकें भी भारत में अपनी शाखायें खोलकर कारोबार कर रही हैं। इनकी शाखायें महानगरों तथा प्रमुख शहरों तक ही सीमित हैं। देश में ग्रामीण बैंकों का बड़ा संजाल फैलाया गया है। देश में लघु बैंकिंग कारोबार में इन ग्रामीण बैंकों की बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है।

भारत की बैंकिंग-संरचना

भारत में आधुनिक बैंकिंग सेवाओं का इतिहास दो सौ वर्ष पुराना है।

भारत के आधुनिक बैंकिंग की शुरुआत ब्रिटिश राज में हुई। १९वीं शताब्दी के आरंभ में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने ३ बैंकों की शुरुआत की - बैंक ऑफ बंगाल १८०९ मेंबैंक ऑफ बॉम्बे १८४० में और बैंक ऑफ मद्रास १८४३ में। लेकिन बाद में इन तीनों बैंको का विलय एक नये बैंक 'इंपीरियल बैंक' में कर दिया गया जिसे सन १९५५ में 'भारतीय स्टेट बैंक' में विलय कर दिया गया। इलाहाबाद बैंक भारत का पहला निजी बैंक था। भारतीय रिजर्व बैंक सन १९३५ में स्थापित किया गया था और बाद में पंजाब नेशनल बैंकबैंक ऑफ़ इंडियाकेनरा बैंक और इंडियन बैंक स्थापित हुए।

प्रारम्भ में बैंकों की शाखायें और उनका कारोबार वाणिज्यिक केन्द्रों तक ही सीमित होती थी। बैंक अपनी सेवायें केवल वाणिज्यिक प्रतिष्ठानों को ही उपलब्ध कराते थे। स्वतन्त्रता से पूर्व देश के केन्द्रीय बैंक के रूप में भारतीय रिजर्व बैंक ही सक्रिय था। जबकि सबसे प्रमुख बैंक इम्पीरियल बैंक ऑफ इण्डिया था। उस समय भारत में तीन तरह के बैंक कार्यरत थे - भारतीय अनुसूचित बैंक, गैर अनुसूचित बैंक और विदेशी अनुसूचित बैंक।

स्वतन्त्रता के उपरान्त भारतीय रिजर्व बैंक को केन्द्रीय बैंक का दर्जा बरकरार रखा गया। उसे 'बैंकों का बैंक' भी घोषित किया गया। सभी प्रकार की मौद्रिक नीतियों को तय करने और उसे अन्य बैंकों तथा वित्तीय संस्थाओं द्वारा लागू कराने का दायित्व भी उसे सौंपा गया। इस कार्य में भारतीय रिजर्व बैंक की नियंत्रण तथा नियमन शक्तियों की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है।

 

वर्तमान भारत में बैंकिंग

भारत में बैंकिंग बहुत सुविधाजनक और परेशानी मुक्त है। कोई भी (व्यक्ति, समूह या जो भी हो) आसानी से लेनदेन की प्रक्रिया कर सकता हैं जब भी किसी को आवश्यकता हो। बैंकों द्वारा भारत में दी जाने वाली आम सेवाएँ इस प्रकार हैं -

·         बैंक खाते: यह बैंकिंग क्षेत्र की सबसे आम सेवा है। कोई भी व्यक्ति बैंक खाता खोल सकता है जो कि बचतखाता, चालू खाता या जमा खाता कुछ भी हो सकता है।

·         ऋण खाते: आप विभिन्न प्रकार के ऋणों के लिए किसी भी बैंक का रुख कर सकते हैं। यह आवास ऋण, कार ऋण, व्यक्तिगत ऋण, शेयर के विरुद्ध ऋण और शैक्षिक ऋण या कोई भी ऋण हो सकता है।

·         धन हस्तांतरण: बैंकें विश्व के एक कोने से दूसरे कोने में पैसा स्थानांतरण करने के लिए ड्राफ्ट, धनाआदेश या चेक जारी कर सकते है।

·         क्रेडिट और डेबिट कार्ड: सभी बैंकें अपने ग्राहकों को क्रेडिट कार्ड की पेशकश करते हैं। जो कि उत्पादों और सेवाओं को खरीदने के लिये या पैसे उधार लेने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।

·         लाकर्स : अधिकांश बैंकों के पास लाकर्स सुविधा उपलब्ध होती है जिसमें ग्राहक अपने महत्वपूर्ण दस्तावेज या क़ीमती गहने सुरक्षित रख सकता है।

अनिवासी भारतीयों के लिए बैंकिंग सेवा

अनिवासी भारतीयों या एनआरआई लगभग सभी भारतीय बैंकों में खाता खोल सकते हैं। अनिवासी भारतीय तीन प्रकार के खाते खोल सकते हैं:

·         अनिवासी खाता (साधारण) - NRO

·         अनिवासी (बाह्य) रुपया खाते - NRE

·         अनिवासी (विदेशी मुद्रा) खाता - FCNR

विभिन्न प्रकार के वाणिज्यिक बैंक

भारत की वाणिज्यिक बैंकिंग इन श्रेणियों में रख सकते हैं-

१. केंन्द्रीय बैंक - रिजर्व बैंक ओफ़ इंडिया भारत की केंन्द्रीय बैंक है जो कि भारत सरकार के अधीन है। इसे केन्द्रीय मंडल के द्वारा शासित किया जाता है, जिसे एक गवर्नर नियंत्रित करता है जिसे केन्द्र सरकार नियुक्त करती है। यह देश के भीतर की सभी बैंकों को संचालन के लिए दिशा निर्देश जारी करती है।

२. सार्वजनिक क्षेत्रों के बैंक -

·         भारतीय स्टेट बैंक और उसके सहयोगी बैंकों को 'स्टेट बैंक समूह' कहा जाता है।

·         20 राष्ट्रीयकृत बैंक

·         क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक जो कि मुख्य रूप से सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों द्वारा प्रायोजित हैं।

३. निजी क्षेत्र के बैंक

·         पुरानी पीढ़ी के निजी बैंक

·         नई पीढ़ी के निजी बैंक

·         भारत में सक्रिय विदेशी बैंक

·         अनुसूचित सहकारी बैंक

·         गैर अनुसूचित बैंक

४. सहकारी क्षेत्र - सहकारी क्षेत्र की बैंकें ग्रामीण लोगों के लिए बहुत अधिक उपयोगी है। इस सहकारी बैंकिंग क्षेत्र को निम्नलिखित श्रेणियों में विभाजित कर सकत हैं -

·         1. राज्य सहकारी बैंक

·         2. केन्द्रीय सहकारी बैंक

·         3. प्राथमिक कृषि ऋण सोसायटी

५. विकास बैंक / वित्तीय संस्थाएँ

·         आईएफसीआई

·         आईडीबीआई

·         आईसीआईसीआई

·         IIBI

·         SCICI लिमिटेड

·         नाबार्ड

·         निर्यात आयात बैंक ऑफ इंडिया

·         राष्ट्रीय आवास बैंक

·         भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक

·         पूर्वोत्तर विकास वित्त निगम

भारत में कार्यरत बैंकों की सूची

केंद्रीय बैंक

·         भारतीय रिजर्व बैंक - भारत का केंद्रीय बैंक

अनुसूचित बैंक (सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक)

·         बैंक ऑफ इंडिया

·         देना बैंक

·         आईडीबीआई बैंक

·         भारतीय महिला बैंक

·         इंडियन बैंक

·         ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स

·         पंजाब नेशनल बैंक

·         यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया

·         यूको बैंक

·         इलाहाबाद बैंक

·         आंध्रा बैंक

·         बैंक ऑफ बड़ौदा

·         बैंक ऑफ महाराष्ट्र

·         केनरा बैंक

·         सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया

·         कॉर्पोरेशन बैंक

·         इंडियन ओवरसीज बैंक

·         सिंडिकेट बैंक

·         यूनियन बैंक ऑफ इंडिया

·         विजया बैंक

·         पंजाब एण्ड सिंध बैंक

भारतीय स्टेट बैंक और सहयोगी

·         भारतीय स्टेट बैंक

·         स्टेट बैंक ऑफ बीकानेर एण्ड जयपुर

·         स्टेट बैंक ऑफ इंदौर (2010 में एसबीआई के साथ विलय)

·         स्टेट बैंक ऑफ ट्रावनकोर

·         स्टेट बैंक ऑफ पटियाला

·         स्टेट बैंक ऑफ हैदराबाद

·         स्टेट बैंक ऑफ मैसूर

·         सौराष्ट्र स्टेट बैंक (2008 में एसबीआई के साथ विलय)

·         स्टेट बैंक ऑफ बीकानेर

·         स्टेट बैंक ऑफ जयपुर

निजी बैंक[

·         आईसीआईसीआई बैंक* (एचडीएफसी बैंक)

·         ऐक्सिस बैंक

·         कोटक महिंद्रा बैंक

·         यस बैंक

·         फेडरल बैंक

·         साउथ इंडियन बैंक

भारत का आर्थिक इतिहास

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इस्वी सन ०००१ से २००३ ई तक विश्व के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं का अंश ; ध्यातव्य है कि १८वीं शताब्दी के पहले तक भारत और चीन विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाएँ थीं

भारत का आर्थिक विकास सिंधु घाटी सभ्यता से आरम्भ माना जाता है। सिंधु घाटी सभ्यता की अर्थव्यवस्था मुख्यतः व्यापार पर आधारित प्रतीत होती है जो यातायात में प्रगति के आधार पर समझी जा सकती है। लगभग 600 ई॰पू॰ महाजनपदों में विशेष रूप से चिह्नित सिक्कों को ढ़ालना आरम्भ कर दिया था। इस समय को गहन व्यापारिक गतिविधि एवं नगरीय विकास के रूप में चिह्नित किया जाता है। 300 ई॰पू॰ से मौर्य काल ने भारतीय उपमहाद्वीप का एकीकरण किया। राजनीतिक एकीकरण और सैन्य सुरक्षा ने कृषि उत्पादकता में वृद्धि के साथ, व्यापार एवं वाणिज्य से सामान्य आर्थिक प्रणाली को बढ़ाव मिल।

अगले 1500 वर्षों में भारत में राष्ट्रकुट, होयसला और पश्चिमी गंगा जैसे प्रतिष्ठित सभ्यताओं का विकास हुआ। इस अवधि के दौरान भारत को प्राचीन एवं 17वीं सदी तक के मध्ययुगीन विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में आंकलित किया जाता है। इसमें विश्व के की कुल सम्पति का एक तिहाई से एक चौथाई भाग मराठा साम्राज्य के पास था, इसमें यूरोपीय उपनिवेशवाद के दौरान तेजी से गिरावट आयी।

आर्थिक इतिहासकार अंगस मैडीसन की पुस्तक द वर्ल्ड इकॉनमी: ए मिलेनियल पर्स्पेक्टिव (विश्व अर्थव्यवस्था: एक हज़ार वर्ष का परिप्रेक्ष्य) के अनुसार भारत विश्व का सबसे धनी देश था और 17वीं सदी तक दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यस्था था।[1][2]

भारत में इसके स्वतंत्र इतिहास में केंद्रीय नियोजन का अनुसरण किया गया है जिसमें सार्वजनिक स्वामित्व, विनियमनलाल फीताशाही और व्यापार अवरोध विस्तृत रूप से शामिल है।[3][4] 1991 के आर्थिक संकट के बाद केन्द्र सरकार ने आर्थिक उदारीकरण की नीति आरम्भ कर दी। भारत आर्थिक पूंजीवाद को बढ़ावा देन लग गया और विश्व की तेजी से बढ़ती आर्थिक अर्थव्यवस्थाओं में से एक बनकर उभरा।[3][5]

सिंधु घाटी सभ्यता

सिंधु घाटी सभ्यता विश्व का सबसे पहला ज्ञात स्थायी और मुख्य रूप से नगरीय आबादी का उदाहरण है। इसका विकास 3500 ई॰पू॰ से 1800 ई॰पू॰ तक हुआ जो उन्नत और संपन्न आर्थिक प्रणाली की ओर बढ़ा। यहाँ के नागरिकों ने कृषि, पालतू जानवार, तांबेकांसा एवं टिन से तिक्ष्ण उपकरणों और शस्त्रों का निर्माण तथा अन्य नगरों के साथ इसका विक्रय करना आरम्भ किया।[6] घाटी के बड़े नगरों हड़प्पालोथलमोहन जोदड़ो और राखीगढ़ी में सड़कें, अभिविन्यास, जल निकासी प्रणाली और जलापूर्ति के साक्ष्य, उनकी नगरीय नियोजन के ज्ञान को उद्धघाटित करता है।

प्राचीन और मध्ययुगीन विशेषताएँ

यद्यपि प्राचीन भारत में महत्त्वपूर्ण नगरीय जनसंख्या पायी जाती है लेकिन भारत की अधिकत्तर जनसंख्याँ गाँवों में निवास करती थी जिसकी अर्थव्यवस्था विस्तृत रूप से पृथक और आत्मनिर्भर रही है। आबादी का मुख्य व्यवसाय कृषि था और कपड़ा, खाद्य प्रसंस्करण तथा शिल्प जैसे हाथ आधारित उद्योगों के लिए कच्चा माल उपलब्ध कराने के अलावा खाद्य आवश्यकताएँ भी कृषि से पूर्ण होती थी। कृषकों के अलावा अन्य वर्गों के लोग नाई, बढ़ैइ, चिकित्सक (आयुर्वेद चिकित्सक अथवा वैद्य), सुनार, बुनकर आदि कार्य करते थे।[7]

धर्म

आर्थिक गतिविधियों को रूप देने में मुख्यतः हिन्दू धर्म और जैन धर्म प्रभावशाली भुमिका निभाते हैं।

तीर्थस्थल कस्बे जैसे इलाहाबादबनारसनासिक और पुरी जो मुख्यतः नदियों के तटों पर स्थित हैं तथा व्यापार एवं वाणिज्य के केन्द्र के रूप में विकसित हुये। धार्मिक उत्सव, त्योहार और तीर्थ यात्रा पर जाने की प्रथा ने तीर्थ अर्थव्यवस्था को उत्कर्ष पर पहुँचाया।

जैन धर्म में अर्थव्यवस्था को तीर्थकर महावीर और उनके सिद्धान्तों एवं दर्शन ने प्रभावित किया। इसके पीछे का इतिहास उनके दर्शन से समझाया जाता है। वो जैन धर्म के फैलाने वाले अन्तिम और 24वें तीर्थंकर थे। आर्थिक प्रसंग में उन्होंने 'अनेकांत (गैर-निरेपक्षतावाद) के सिद्धान्त से समझाया।

 

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